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सफर - मौत से मौत तक….(ep-22)

नंदू नए घर मे शिफ्ट हो चुका था, समीर और नंदू और एक कामवाली बाई जो हजार रुपये में सुबह झाड़ू पोछा खाना पकाना बर्तन साफ करना और हफ्ते में दो दिन कपड़े धोने का काम करती है। दिन के लिए भी वही पकाकर चली जाती थी और शाम को नंदू खुद बनाता था। नाम था पुष्पाकली……. सुबह नंदू जल्दी उठ जाता था जबकि समीर के उठने का टाइम फिक्स था नौ बजे के बाद। और समीर के उठने तक पुष्पाकली सारा काम खत्म करने के बावजूद भी जा नही सकती थी और इंतजार करती की समीर साहब उठ जाएंगे तो मैं उस कमरे की सफाई भी कर लुंगी।

"तुम सिर्फ एक ही घर मे काम करते हो या शाम को कहीं और भी…." नंदू ने पुष्पाकली से पूछा।

"नही साहब….शाम को अपना घर भी देखना है, अपने बच्चे भी देखने है, मैं बस सुबह 6 से 9 तक यहाँ फिर साढ़े नौ से ग्यारह बजे तक दूसरी कोठी में करती हूँ, फिर बच्चो के लिए दिन में खाना पकाना होता है"पुष्पाकली में कहा।

"लेकिन फ्री तो तुम आठ बजे हो जाती हो, अगर चाहो तो साढ़े आठ से दस तक उस घर का काम भी खत्म कर सकते हो, फिर आराम से घर जाकर आराम कर के थोड़ी देर में खाना पका लेना" नंदू ने कहा।

"लेकिन कहाँ साहब……समीर साहब उठते नही टाइम पर, एक घंटा तो उनके उठने के इन्तजारमे वेस्ट हो जाता है" पुष्पाकली बोली।

"पति क्या करते……"कहते कहते नंदू रुक गया क्योकि उसने ना ही मंगलशुत्र पहना था ना चूड़ी, बिंदी….

"वो तो चल बसे, हमे अकेला छोड़कर" पुष्पाकली बोली।

"फिर तो अकेलापन खलता होगा आपको…. जीवनसाथी के बिना तो दुनिया बेकार है" नंदू बोला।

पुष्पाकली मन ही मन सोचने लगी -" ये बूढ़ा तो ठरकी मालूम होता है, इससे दूर रहने में फायदा है"

"नही बच्चे है ना, एक लड़का एक लड़की है, किसी की कमी महसूस नही होती, मन लगा रहता है" पुष्पाकली बोली।

"बच्चे थोड़ी जीवनसाथी की कमी पूरा कर सकते है" नंदू हर बात खुद और गौरी को सोचकर बोल रहा था। जितने शिद्दत से वो आज भी गौरी को चाहता था, शायद किसी और को इतना प्यार अपनी गुजरी हुई पत्नी से होता होगा।

"ये तो पीछे ही पढ़ गया, माना कि मैं गरीब हूँ, लेकिन इस बूढ़े ने तो हद ही कर रखी है……ये अमीर लोग बस गरीबो का शोषण करने जानते है, इससे पहले ये और कोई सवाल जवाब करे अंदर जाकर कुछ काम पर लग जा पुष्पाकली….नही तो ये बूढ़ा आज परेशान ही कर देगा" पुष्पाकली ने मन ही मन मे खुद से कहा और अंदर किचन की तरफ चली गयी।

नंदू ने अब खुद से कहा- "बेचारी….अपने बच्चों के लिए कितना मेहनत करती है, कैसी जिंदगी हो जाती है जब कमाने और पेट पालने की ज़िमेदार सिर और आती है तो"

नंदू अपने लेवल से सोच रहा था। माना कि आज उसकी गिनती सेठ लोगो मे हो रही है क्योकि अपना मकान, वक़िल लड़का और घर के बाहर अपनी गाड़ी हर किसी के पास नही होता वो भी दिल्ली जैसे शहर में, लेकिन नंदू अपनी पुरानी जिंदगी की तुलना उससे कर रहा था। नंदू भी उस दौर से गुजर चुका था जब पैसे पैसे के लिए मेहनत करता था। लेकिन पुष्पाकली उसकी बातों का गलत मतलब निकाल रही थी। खैर सभी लोग अपनी सोच और सोचने की    क्षमता के आधार पर ही सामने वाले के बातो का मतलब निकालते है। और नंदू के बातो का पुष्पाकली ने आज के जमाने के लोगो के हिसाब से मतलब निकाला था जो गलत नही है, कभी कभी अपनी सुरक्षा के लिए नकारात्मक सोच होना भी जरूरी है, हमेशा सकारात्मक सोच भी धोका दे देती है।

धीरे धीरे दिन गुजर रहे थे, शुरुआत में समीर घर से बाहर जाते समय आवाज मारते हुए पापा को बोलकर जाता था- "बाय पापा! मैं जा रहा आफिस, ध्यान रखना अपना"
कहकर समीर दस बजे घर से निकलता था। शाम को आने का टाइम फिक्स नही था। कभी छह कभी सात तो कभी नौ भी बजा देता था।

नंदू दिन भर घरमें रहता था। टीवी भी खोलता तो चेनल बदलना नही याद रहता था। एक बारीक से रिमोट था, जिसके छोटे छोटे बटन थे, कोई गलत बटन दबा दिया तो खराब हो जाएगा ये एक डर था मन मे जो कुछ सीखने नही दे रहा था। नंदू को सिर्फ पुराने घर की ही नही अपने रिक्शे की भी याद आ रही थी, जो वो कुछ दिन में ले जाऊँगा बोलकर  अपने मित्र राजू के भरोसे छोड़कर आया था। आजकल नंदू बार बार राजू को फोन करके उससे गप्पे लड़ाता था। बहुत आनंद की अनुभूति होती थी। दोनो अपने अपने बातो से एक दूसरे का दिल बहलाते रहते। और राजू नंदू की किस्मत को सराहता रहता

" आपकी किस्मत अच्छी है बड़े भाई जो समीर जैसा लड़का आपको मिला है, एक वक्त था जब आप उसे रिक्शे से स्कूल तक छोड़कर आते थे" राजू ने कहा।

"हां ये बात तो है,मेहनती लड़का है समीर….उसकी मेहनत का ही नतीजा है, सुबह दस बजे से शाम को आठ नौ बजे तक फुर्सत नही उसे। उसके बाद हम दोनों नौ बजे खाना खाते है। और मैं सो जाता हूँ, लेकिन वो बारह एक बजे तक आफिस का काम करता रहता है। बहुत फोन आते है ऑफिस से उसे, रात को भी आराम नही कर पाता बेचारा" नंदू बोला।

नंदू  के बगल में नंदू अंकल भी बैठा था, जब उसने ये बात सुनी तो ठहाका मारकर हंसने लगा। और जोर से बोला।
"आफिस से कोइ फोन नही आता बाबू मोसाय….वो ठेकेदारनी से लैपटॉप पर वीडियो चैट होती है….लेकिन समीर ने तेरी आँखों मे  तो उसे ऑनलाइन मीटिंग के नाम की पट्टी बांध रखी है, तुझे वही दिखेगा जो बेटा समीर दिखाना चाहेगा।

नंदू और राजू रोज की तरह आपस मे बात कर रहे थे।


*****


हफ्ते भर तक तो नया घर बिल्कुल ही अटपटा लगा, लेकिन अब धीरे धीरे आदत होने लगी थी, नंदू सुबह सुबह छत में जाकर गमलों की देखभाल करने लग जाता था। और फिर समीर के ठीक आफिस जाने के टाइम पर नीचे हॉल में आ जाता, और जब समीर अपना टिफिन और बैग उठाता तो उसके पीछे पीछे दरवाजे तक जाता था। और उसको विदा करने के बाद कमरे के एक कोने से दयसरे कोने चक्कर लगाता रहता। कभी हॉल में कभी अंदर तो कभी छत में…. एक जगह मन ही नही लगता था।

बार बार राजू को फोन करना भी अच्छा नही लगता, आखिर इस बुढ़ापे में बात करे तो किससे करे…. पहले सुबह से शाम तक कभी रिक्शा वाला, कभी ऑटो वाला तो कभी सवारी मिलती थी बात करने के लिए। और शाम को समीर को फोन करके भी अलग शुकुन मिलता था।

मगर अब….अब समीर और वो आमने सामने होकर भी लिमिटेड बात करते थे। कभी कभी कोई चर्चा छिड़ जाती जिसपर बात करना जरूरी हो तो दोनो बात कर लेते थे। या एक दुसरे से कोई काम हो तो एक दुसरे से बात करते थे। फिर भी नंदू 6 बजने के इंतजार में बार बार वक्त देखता। समय देखते हुए फिर गौरी कि याद आने लगती, और बाबूजी की यादों के साथ मम्मी की यादें भी ताजा हो जाती थी……दिन भर अकेला इंसान और करे भी क्या……
या किसी से बात करेगा या किसी को याद करेगा। कुछ तो करना पड़ेगा ही।

दूसरी तरफ समीर पर बार बार दबाब पड़ रहा था इशानी हर बार उसे बोल रही थी की इससे पहले मेरी शादी कहीं और जगह हो तुम बात कर लो….और आज समीर पूरे मूड के साथ बहुत सारी हीम्मत लेकर अपने पापा के सामने पेश हुआ था।

"वो पापा आपसे एक जरुरी बात करनी थी" समीर ने हिचकिचाते हुए पापा से कहा।

समीर को सामने खड़ा देख नंदू ने उसे बैठने को कहा। और पूछा- "बोलो क्या बात है"

"मुझे ऐसा लग रहा है आप दिन भर घर मे अकेले परेशान हो जाते हो….और वैसे भी इतने बड़े घर मे पूरा दिन अकेले बिताना कितना मुश्किल है मैं समझता हूँ…" समीर बोला ही था कि नंदू बीच मे मुस्कराता हुआ बोल पड़ा- "अरे! ये तो तुमने मेरे मन की बात छीन ली….मैं खुद इस विषय मे आपसे बात करने वाला था"

नंदू अंकल से भी रहा नही गया- "अरे पागल, तुम्हारा बेटा समीर तुम्हारे कंधे में बंदूक रखकर चला रहा है। तुम्हारे अकेलेपन से उसे कोई मतलब नही है, तुम इतना खुश मत हो जाओ"

"हाँ पापा…दिन भर अकेले मेरा मन आफिस में ढेर सारे काम के बावजूद नही लगता फिर आपका कैसे लग सकता है घर में"  समीर ने कहा।

"सही कह रहा है, लेकिन कर भी क्या सकते है, इसका एक ही उपाय है तू अपना घर बसा ले, घर मे बहु आएगी और कल को बच्चे होंगे तो मेरा भी मन लग जायेगा और तेरा भी" नंदू बिना बोले समीर के कहने का इतना मतलब तो समझ चुका था कि उसका इशारा किस तरफ है।

"अगर इसका एक ही उपाय है तो मुझे कोई दिक्कत नही है।   वैसे भी उम्र गुजरते वक्त कहाँ लगता है" समीर ने कहा।

"चल ठीक है, मैं आज ही लड़की वालों से बात कर लेता हूँ।" नंदू बोला।

समीर सरप्राइज हो गया कि आखिर पापा लड़की वालों को कैसे जानते है, इन्हें तो कभी बताया नही उसके बारे में, बस इतना जानते है कि हम दोस्त है।

"आप….लड़की वालों से….मतलब आपने देख ली लड़की"
समीर बोला।

"आज से नही बेटा, बहुत सालों से देख ली, सुंदर, शुशील और सर्वगुण सम्पन्न है हमारी मन्वी……" नंदू ने कहा।

"मन्वी….उस पागल से शादी वो भी मैं.……पापा प्लीज मजाक मत करो मेरे साथ" समीर एकदम से खड़ा हो गया।

"लेकिन तूने बचपन मे देखी वो….अब नही है वो शैतान…और अवनी में बुराई ही क्या है" नंदू ने कहा।

"अगर मन्वी दुनिया की लास्ट लड़की भी हुई ना……तो भी मैं उससे शादी नही करूँगा….प्लीज" कहकर समीर अंदर चला गया,

नंदू ने मन ही मन सोचा- "मन्वी को एक बार देख लेगा तो फिर तेरे मन से उसके लिए जितनी नफरत है सब दूर हो जाएगी बेटा……मैं भी चंपा को देखने के बाद सोचता था कि उसके अलावा कोई लड़की मुझे पसंद ही नही आ सकती, लेकिन गौरी से मिला तो उसने सारी गलतफहमिया दूर कर दी।" नंदू ने मन ही मन सोचा।

नंदू ने राजू को फोन किया और अगले दिन इतवार को अपनी लड़की मन्वी के साथ आने को कहा।

कहानी जारी है।

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1 Comments

Shalini Sharma

22-Sep-2021 11:58 PM

Nice

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